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Friday, June 30, 2017

इमरान बदायूँनी

ग़ज़ल


तूने तस्वीर वफ़ा की जो बनायी हुई है
सच बता कौन से नॉवेल से उठाई हुई है

जिसके किस्से तिरी आँखों में नमी ले आये
मैंने उस राह पे इक उम्र बिताई हुई है

ऐसे रहती हैं तमन्नायें मेरे सीने में
जैसे बस्ती किसी मरघट में बसाई हुई है

मुझको बनना ही नहीं कुछ भी,उतारो मुझको
चाक पर किसने मिरी मिट्टी चढ़ाई हुई है

क्यों हमें फिर भी गवारा नहीं करती दुनिया
हमने सीने में हरिक चीख दबाई हुई है

तू जो कहता है तो मैं साथ चले चलता हूँ
वैसे मन्ज़िल तो तिरी देखी दिखाई हुई है

मैं भी कुछ देर उसे रोक के रखना चाहूँ
उसने भी कप में अभी चाय बचाई हुई है



मेरे अशआर मिरी नज़्में अजी कुछ भी नहीं
एक वहशत है वही सर पे उठाई हुई है

Image from google.com 




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