ग़ज़ल
तूने तस्वीर वफ़ा की जो बनायी हुई है
सच बता कौन से नॉवेल से उठाई हुई है
सच बता कौन से नॉवेल से उठाई हुई है
जिसके किस्से तिरी आँखों में नमी ले आये
मैंने उस राह पे इक उम्र बिताई हुई है
मैंने उस राह पे इक उम्र बिताई हुई है
ऐसे रहती हैं तमन्नायें मेरे सीने में
जैसे बस्ती किसी मरघट में बसाई हुई है
जैसे बस्ती किसी मरघट में बसाई हुई है
मुझको बनना ही नहीं कुछ भी,उतारो मुझको
चाक पर किसने मिरी मिट्टी चढ़ाई हुई है
चाक पर किसने मिरी मिट्टी चढ़ाई हुई है
क्यों हमें फिर भी गवारा नहीं करती दुनिया
हमने सीने में हरिक चीख दबाई हुई है
हमने सीने में हरिक चीख दबाई हुई है
तू जो कहता है तो मैं साथ चले चलता हूँ
वैसे मन्ज़िल तो तिरी देखी दिखाई हुई है
वैसे मन्ज़िल तो तिरी देखी दिखाई हुई है
मैं भी कुछ देर उसे रोक के रखना चाहूँ
उसने भी कप में अभी चाय बचाई हुई है
उसने भी कप में अभी चाय बचाई हुई है
मेरे अशआर मिरी नज़्में अजी कुछ भी नहीं
एक वहशत है वही सर पे उठाई हुई है
एक वहशत है वही सर पे उठाई हुई है
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