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Friday, July 28, 2017

जितेन्द्रनाथ गिरि

बहत दिनो के बाद


          



Image Courtesy: Tripoto



   बहत दिनो के बाद, अब

        गरजने लगे है बादल ।
बहत दिनो के बाद, अब
        बरसने लगे है बारिश ।
बहत दिनो के बाद, अब
        सुनने को मिला है मेघो के संगीत । 
        हरियाली की प्राणो की गीत ।
देखने को मिले है 
        अम्बर और धरती की मिताली ।
बहत दिनो के बाद, अब
        सृष्टी को मिली है एक निर्भीक जीत् ।

फुलो की रंगो को मिली है रंगत

        बहत दिनो के बाद ।

खिली है मन की उमंगो की कलि
         बहुत दिनो के बाद ।
बहत दिनो के बाद, अब
धरती सजाने आई है
        रिम् झिम् बारिशों की टोली ।
जिने की श्वास में, जो गले में
कस गये थे गर्मी की फाँस, 
        अब हुये है आजाद ।
बहत दिनो के बाद, अब
साजने लगी है जीवन की रंगोली ।

बहत दिनो के बाद, अब

पँहूचि है ठंडक, हवायों के घर ।

बहत दिनो के बाद, अब 
रज कण को मिली है
        ठण्डि ठण्डि लहर ।
गुनगुनाने लगे है सबुज
नृत्तविद बनने लगे है अबूझ ।
बहुत दिनो के बाद, अब 
आपस में मिलने लगे है 
        खेत-खलिहान, गाँव-शहर ।





          

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